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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
सप्तदश अध्याय
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसा: । सात्विक पुरुष देवताओं को पूजते हैं, राजस यक्ष-राक्षसों को तथा दूसरे तामस लोग प्रेत और भूतगणों को पूजते हैं। जो मनुष्य शास्त्र विधि से विपरीत केवल मनः कल्पित घोर तप तपते हैं, वे दम्भ और अहंकार से युक्त एवं कामना, आसक्ति और बल समन्वित पुरुष शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को और अन्तःकरण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कृश करने वाले (क्लेश पहुँचाने वाले) हैं। उन अज्ञानियों को तू असुर स्वभाव वाले जान।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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