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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
सप्तदश अध्याय
त्रिविध आहार आहार भी सबको अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है। (वैसे ही) यज्ञ, तप और दान भी तीन-तीन प्रकार के होते हैं। उनके इस पृथक्-पृथक् भेद को तू मुझसे सुन। आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले, रसयुक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वाभाव से ही मन को मन को प्रिय लगने वाले आहार (भोजन करने के पदार्थ) सात्विक पुरुष को प्रिय होते हैं। कड़वे, खट्टे, नमकीन, बहुत गरम, तीखे, रूखे, जलन उत्पन्न करने वाले और दुःख, चिन्ता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार (भोजन करने के पदार्थ) राजस पुरुष को प्रिय होते हैं।। 9।। जो भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गन्धयुक्त, बासी और उच्छिष्ट (जूँठा) तथा अपवित्र है वह भोजन तामस मनुष्य को प्रिय होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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