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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
सप्तदश अध्याय
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विता: । अर्जुन ने पूछा- श्रीकृष्ण! जो शास्त्र विधि को त्याग कर श्रद्धा से युक्त हुए पुरुष देवादि का पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन-सी है? सात्विकी, राजसी अथवा तामसी?। श्री भगवान् बोले-मनुष्यों की (वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित) केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी ऐसे तीनों प्रकार की होती है। उनको तू मुझसे सुन। भारत! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्तःकरण के अनुरूप हुआ करती है। यह पुरुष श्रद्धामय है; जो पुरुष जैसी श्रद्धा वाला है, वह स्वयं भी वही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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