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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
षोडश अध्याय
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: । काम, क्रोध तथा लोभ-ये तीन प्रकार के नरक के द्वार आत्मा का पतन करने वाले (उसको अधोगति में ले जाने वाले) हैं। अतएव इन तीनों का त्याग कर देना चाहिय। कुन्ती पुत्र अर्जुन! इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त पुरुष अपने कल्याण का आचरण करता है, इससे वह परम गति को जाता है, (मुझको प्राप्त होता है)। जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न सुख को और न परम गति को ही । अतएव तेरे लिये इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है। ऐसा जानकर तुझे शास्त्र विधि के अनुसार नियत कर्म ही करना चाहिये। श्रीमद् भगवद्गीता-‘दैवासुर सम्पद् विभाग योग’ नामक षोडश अध्याय |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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