गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 948

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-16
दैवासुर-संपद-विभाग-योग
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(1)
श्रीभगवान उवाच

अभयं सत्त्वसंशुद्धि:
ज्ञानयोग व्यवस्थिति: ।
दानं दमश्च यज्ञश्च
स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥

भगवान कृष्ण ने कहा-

सत्त्व[1]-संशुद्धि सहित भय-हीन वो[2]
होता व्यवस्थित ज्ञान-योग-युक्त[3] है।
दानी संयमी स्वाध्यायी[4] वो
यज्ञ-तप-कर्ता होता आर्जवी[5]है।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्तःकरण की शुद्धि तथा सात्त्विक वृति
  2. दैवी सम्पदाभिजात व्यक्ति
  3. ज्ञान-मार्ग और कर्म-योग-मार्ग में गाढ़ स्थिति रखने वाला
  4. स्व-धर्मानुसार आचरण करने वाला
  5. सरल स्वभावी; सत्य व स्पष्ट वक्ता

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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