गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 27

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


गीतोपदेश के पश्चात् भागवत धर्म की स्थिति
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आचार्य ब्रह्मदत्त :-

आचार्य ब्रह्मदत्त की जानकारी तीन श्रोतों द्वारा होती है। एक तो सुरेश्वराचार्य कृत “वृहदारण्यक भाष्य-वर्तिका” से, दूसरे वेदान्त दर्शिकाचार्य कृत “तत्त्वमुक्ताकलाप की सर्वार्थ सिद्धि टीका” से, तीसरे श्रीशंकराचार्य कृत “उपनिषद्-भाष्य” से। इन तीनों ही आचार्यों ने अपनी तीनों ही कृतियों में आचार्य ब्रह्मदत्त के नाम का उल्लेख किया है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है, कि आचार्य ब्रह्मदत्त या तो इन तीनों आचार्यों के पहले हुए या इनके समसामयिक थे।

इसी प्रकार श्रीभट्ट भास्कर व पुरुषोत्तमाचार्य 8 वीं शती में, वाचस्पति मिश्र 9वीं शती में, यामुनाचार्य 10 वीं शती में[1], रामानुजाचार्य 11 वीं शती में[2] आदि महान देवाचार्य इस राजपूत युग में हुए हैं।

यह राजपूत युग महान विप्लवकारी व शान्तिरहित था। चारों ओर अराजकता फैल रही थी। आपस में ईर्ष्या, द्वेष व फूट थी। एकता व राष्ट्रीय भावना का लवलेश भी न था और समस्त समाज स्वार्थपरायण हो चुका था। इन भागवताचार्यों ने भक्ति मार्ग को व वर्णाश्रम धर्म को अपने उपदेशों का मूल आधार बनाया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 918 से 1038 तक
  2. 1017 से 1137 ई. तक

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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