गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
आचार्य ब्रह्मदत्त :- आचार्य ब्रह्मदत्त की जानकारी तीन श्रोतों द्वारा होती है। एक तो सुरेश्वराचार्य कृत “वृहदारण्यक भाष्य-वर्तिका” से, दूसरे वेदान्त दर्शिकाचार्य कृत “तत्त्वमुक्ताकलाप की सर्वार्थ सिद्धि टीका” से, तीसरे श्रीशंकराचार्य कृत “उपनिषद्-भाष्य” से। इन तीनों ही आचार्यों ने अपनी तीनों ही कृतियों में आचार्य ब्रह्मदत्त के नाम का उल्लेख किया है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है, कि आचार्य ब्रह्मदत्त या तो इन तीनों आचार्यों के पहले हुए या इनके समसामयिक थे। इसी प्रकार श्रीभट्ट भास्कर व पुरुषोत्तमाचार्य 8 वीं शती में, वाचस्पति मिश्र 9वीं शती में, यामुनाचार्य 10 वीं शती में[1], रामानुजाचार्य 11 वीं शती में[2] आदि महान देवाचार्य इस राजपूत युग में हुए हैं। यह राजपूत युग महान विप्लवकारी व शान्तिरहित था। चारों ओर अराजकता फैल रही थी। आपस में ईर्ष्या, द्वेष व फूट थी। एकता व राष्ट्रीय भावना का लवलेश भी न था और समस्त समाज स्वार्थपरायण हो चुका था। इन भागवताचार्यों ने भक्ति मार्ग को व वर्णाश्रम धर्म को अपने उपदेशों का मूल आधार बनाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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