गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय- 2
सांख्य-योग
सांख्य-योग
किसी कर्म का अच्छा या बुरा होना कर्ता की बुद्धि व भावना पर निर्भर रहता है यदि भावना अच्छी व सत् है तो कर्म भी सत्-कर्म है किन्तु यदि भावना या उद्देश्य कुत्सित है तो कर्म भी कुत्सित-कर्म है और उसका फल भी अच्छा नहीं होता। स्वधर्म-रूप धर्म-युद्ध करने का जो उपदेश श्लोक 33 से 37 में दिया है उसी स्वधर्म-रूप कर्तव्य कर्म को करने की विधि श्लोक 38 में यह बताई है कि समभाव-बुद्धि से अर्थात् सुख-दुःख, हानि-लाभ, जीत या हार को समान-रूप से सहन करने पर या मानने पर कर्म करने से या युद्ध करने से उनमें होने वाली हत्या का पाप नहीं लगता है। अतः स्वधर्म को ध्यान में रखकर और सम-भावबुद्धि को ग्रहण कर युद्ध करने का उपदेश अर्जुन को दिया है। सम-भाव-बुद्धि से युद्ध करना भगवान् श्रीकृष्ण की युद्ध-नीति है। इस नीति से युद्ध करना भी धर्म-युद्ध बन जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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