गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 220

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय- 2
सांख्य-योग
Prev.png

(27)
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः
ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे
न त्वं शोचितुमर्हसि।।

(27)
लेता जन्म तो मरता अवश्य है
मृत का जन्म भी होना निश्चित है।
अपरिहार्य[1] ही जब जन्म-मरण है
अपरिहार्य अर्थ क्यों अवसन्न[2] है?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अवश्यमभावी, अटल, उपाय-रहित।
  2. खिन्न; म्लान-चित्त।

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः