गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय- 1
(अर्जुन विषाद-योग)
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(17-18)
काश्यश्च परमेष्वासः
शिखंडी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च
सात्यकिश्चापराजितः।।
द्रुपदो दौपदेयाश्च
सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः
शंखान्दधमुः पृथक्पृथक्।।
(17-18)
शिखंडी महारथी काशिराज धन्वी ने।
धृष्टद्युम्न विराट-राज सात्यकि अजेय ने।।
सौभद्र महावाहु सह द्रौपदी-पुत्रों ने।
बजाए प्रथक् प्रथक् शंख द्रुपदाऽदि ने।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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