गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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(9)
कार्यमित्येव यत्कर्म
नियतं क्रियतेऽर्जुन ।
संगं त्यक्त्वा फलं चैव स
त्याग: सात्त्विको मत: ॥
मानकर कर्म को कर्तव्य ही
अर्जुन! नियत[1]व करणीय ही।
करे यदि संग-फल विरहित ही
त्याग सात्त्विक होता वो ही।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शास्त्रों द्वारा नियत किए गए कर्म। जो चातुर्यवर्ण व्यवस्था में स्वधर्मानुकूल निर्धारित किए गए हैं
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