गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
|
(5)
यज्ञदानतप: कर्म
न त्याज्यं कार्यमेव तत् ।
यज्ञो दानं तपश्चैव
पावनानि मनीषिणाम् ॥
यज्ञ-दान-तप-कर्म सर्वैव ही
होते न त्याज्य होते करणीय ही।
यश-दान-तप-कर्म सदैव ही
मनीषिजन[1] को है पावनहार[2] ही।।
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बुद्धिमानः पंडितः आसक्ति व कर्मफल को त्यागने वालों को मनीषि कहा है
- ↑ पवित्र करने वाले
संबंधित लेख
गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय
|
अध्याय का नाम
|
पृष्ठ संख्या
|
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज