कृतवर्मा और कृपाचार्य द्वारा भागते हुए सैनिकों का वध

महाभारत सौप्तिक पर्व के अंतर्गत आठवें अध्याय में कृतवर्मा और कृपाचार्य द्वारा भागते हुए सैनिकों के वध का वर्णन हुआ है‌, जो इस प्रकार है[1]

संजय कहते हैं- नरेश्‍वर! अपने पिता के दुर्गम पथ पर चलता हुआ द्रोणकुमार अश्वत्थामा अपनी प्रतिाज्ञा के अनुसार सारा कार्य पूर्ण करके शोक और चिन्‍ता से रहित हो गया। जिस प्रकार रात के समय सबके सो जाने पर शान्‍त शिविर में उसने प्रवेश किया था, उसी प्रकार वह नरश्रेष्‍ठ वीर सबको मारकर कोलाहलशून्‍य हुए शिविर से बाहर निकला। प्रभो! उस शिविर से निकलकर शक्तिशाली अश्वत्‍थामा उन दोनों से मिला और स्‍वयं हर्षमग्‍न हो उन दोनों का हर्ष बढ़ाते हुए उसने अपना किया हुआ सारा कर्म उनसे कह सुनाया। अश्वत्‍थामा का प्रिय करने वाले उन दोनों वीरों ने भी उस समय उससे यह प्रिय समाचार निवेदन किया कि हम दोनों ने भी सहस्‍त्रों पांचालों और सृंजयों के टुकड़े-टुकड़े कर डाले हैं। फिर तो वे तीनों प्रसन्‍नता के मारे उच्‍च स्‍वर से गर्जने और ताल ठोकने लगे। इस प्रकार वह रात्रि उन जन-संहार की वेला में असावधान होकर सोये हुए सोमकों के लिये अत्‍यन्‍त भयंकर सिद्ध हुई। राजन! इसमें संशय नहीं कि काल की गति का उल्‍लघंन करना अत्‍यन्‍त कठिन है। जहाँ हमारे पक्ष के लोगों का संहार करके विजय को प्राप्‍त हुए वैसे-वैसे वीर मार डाले गये।[1]

राजा धृतराष्‍ट्र ने पूछा- संजय! अश्वत्‍थामा तो मेरे पुत्र को विजय दिलाने का दृढ़ निश्‍चय कर चुका था। फिर उस महारथी वीर ने पहले ही ऐसा महान पराक्रम क्‍यों नहीं किया? जब दुर्योधन मार डाला गया, तब उस महामनस्‍वी द्रोणपुत्र ने ऐसा नीच कर्म क्‍यों किया? यह सब मुझे बताओ।

संजय ने कहा- कुरुनन्‍दन! अश्वत्‍थामा को पाण्‍डव, श्रीकृष्‍ण और सात्‍यकि से सदा भय बना रहता था; इसीलिये पहले उसने ऐसा नहीं किया। इस समय कुन्‍ती के पुत्र, बुद्धिमान श्रीकृष्‍ण तथा सात्‍यकि के दूर चले जाने से अश्वत्‍थामा ने अपना यह कार्य सिद्ध कर लिया। उन पाण्‍डव आदि के समक्ष कौन उन्‍हें मार सकता था? साक्षात देवराज इन्‍द्र भी उस दशा में उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। प्रभो! नरेश्‍वर! उस रात्रि में सब लोगों के सो जाने पर यह इस प्रकार की घटना घटित हुई। उस समय पाण्‍डवों के लिये महान विनाशकारी जनसंहार करके वे तीनों महारथी जब परस्‍पर मिल, तब आपस में कहने लगे -बड़े सौभाग्‍य से यह कार्य सिद्ध हुआ है। तदनन्‍तर उन दोनों का अभिनन्‍दन स्‍वीकार करके द्रोण पुत्र ने उन्‍हें हृदय से लगाया और बड़े हर्ष से यह महत्‍वपूर्ण उत्तम वचन मुँह से निकाला- सारे पांचाल, द्रौपदी के सभी पुत्र, सोमकवंशी क्षत्रिय तथा मत्‍स्‍य देश के अवशिष्‍ठ सैनिक ये सभी मेरे हाथ से मारे गये। इस समय हम कृतकृत्‍य हो गये। अब हमें शीघ्र वहीं चलना चाहिये। यदि हमारे राजा दुर्योधन जीवित हो तो हम उन्‍हें भी यह समाचार कह सुनावें।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 8 श्लोक 135-151
  2. महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 8 श्लोक 152-159

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