युधिष्ठिर एवं द्रौपदी का विलाप

महाभारत सौप्तिक पर्व में ऐषीक पर्व के अंतर्गत ग्यारहवें अध्याय में संजय ने युधिष्ठिर तथा द्रौपदी का शोक में व्याकुल होने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

युधिष्ठिर और द्रौपदी का शोक से व्याकुल होना

वैशम्पायन जी कहते है- जनमेजय! अपने पुत्रों, पौत्रों ओर मित्रों को युद्ध में मारा गया देख राजा युधिष्ठिर का हृदय महान दुःख से संतप्त हो उठा। उस समय पुत्रों, पौत्रों, भाइयों और स्वजनों का स्मरण करके उन महात्मा के मन में महान शोक प्रकट हुआ। उनकी आँखे आँसुओं से भर आयी, शरीर कांपने लगा और चेतना लुप्त होने लगी। उनकी ऐसी अवस्था देख उनके सुदृढ़ अत्यन्त व्याकुल हो उस समय उन्‍हें सान्त्वना देने लगे। इसी समय सामर्थ्‍यशाली नकुल सूर्य के समान तेजस्वी रथ के द्वारा शोक से अत्यन्त पीड़ित हुई कृष्णा को साथ लेकर वहाँ आ पहुँचे। उस समय द्रौपदी उपलव्य नगर में गयी हुई थी, वहाँ अपने सारे पुत्रों के मारे जाने का अत्यन्त अप्रिय समाचार सुन कर वह व्यथित हो उठी थी।

राजा युधिष्ठिर के पास पहुँचकर शोक से व्याकुल हुई कृष्णा हवा से हिलायी गयी कदली के समान कम्पित हो पृथ्वी पर गिर पड़ी। प्रफुल्ल कमल के समान विशाल एवं मनोहर नेत्रों वाली द्रौपदी का सुख सहसा शोक से पीड़ित हो राहु के द्वारा ग्रस्त हुए सूर्य के समान तेजोहीन हो गया। उसे गिरी हुई देख क्रोध में भरे हुए सत्यपराक्रमी भीमसेन ने उछलकर दोनों बाँहों से उसको उठा लिया और उस मालिनी पत्नी को धीरज बंधाया। उस समय रोती हुई कृष्णा ने भरतनन्दन पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर से कहा- 'राजन! सौभाग्य की बात है कि आप क्षत्रिय धर्म के अनुसार अपने पुत्रों को यमराज की भेंट चढ़ाकर यह सारी पृथ्वी पा गये और अब इसका उपभोग करेंगे। कुन्तीनन्दन! सौभाग्य से ही आपने कुशलपूर्वक रहकर इस मत मातंगामिनी सम्पूर्ण पृथ्वी का राज्य प्राप्त कर लिया, अब तो आपको सुभद्राकुमार अभिमन्यु की भी याद नहीं आयेगी। अपने वीर पुत्रों को क्षत्रिय धर्म के अनुसार मारा गया सुनकर भी आप उप्लव्य नगर में मेरे साथ रहते हुए उन्हें सर्वथा भूल जायेंगे, यह भी भाग्य की ही बात है'।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-19

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महाभारत सौप्तिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


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ऐषीक पर्व

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