अर्जुन के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग

महाभारत सौप्तिक पर्व में ऐषीक पर्व के अंतर्गत चौदहवें अध्याय में संजय ने अश्वत्थामा के अस्त्र का निवारण करने के लिए अर्जुन के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]

अर्जुन के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! दशार्हनंदन महाबाहु भगवान श्रीकृष्‍ण अश्वत्थामा चेष्ठा से ही उसके मन का भाव पहले ही ताड़ गये थे। उन्‍होंने अर्जुन से कहा- ‘अर्जुन! अर्जुन! पाण्‍डुनंदन! आचार्य द्रोण का उपदेश किया हुआ जो दिव्यास्त्र तुम्‍हारे हृदय में विद्यमान है, उसके प्रयोग का अब यह समय आ गया है। भरतनंदन! भाइयों की और अपनी रक्षा के लिए तुम भी युद्ध में इस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करो। अश्वत्थामा के अस्त्र का निवारण इसी के द्वारा हो सकता है। भगवान श्रीकृष्‍ण के ऐसा कहने पर शत्रुवीरों का संहार करने वाले पाण्‍डुपुत्र अर्जुन धनुष-बाण हाथ में लेकर तुरंत ही रथ से नीचे उतर गये। शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन ने सबसे पहले यह कहा कि ‘आचार्यपुत्र का कल्‍याण हो’। तत्पश्चात् अपने और सम्‍पूर्ण भाईयों के लिए मंगलकामना करके उन्‍होंने देवताओं और सभी गुरुजनों को नमस्‍कार किया। इसके बाद ‘इस ब्रह्मास्त्र से शत्रुओं का ब्रह्मास्त्र शान्‍त हो जाये’ ऐसा संकल्‍प करके सबके कल्‍याण की भावना करते हुए अपना दिव्य अस्त्र छोड़ दिया।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 14 श्लोक 1-16

सम्बंधित लेख

महाभारत सौप्तिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


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