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प्रेम-तत्त्व
- पूर्ण त्यागमय सर्वसमर्पण का जिनके अनन्य अभिलाष।
- निज-सुख-वाच्छा-लेश-गन्ध का त्याग, सहज मन परमोल्लास।।
- प्रियतम-सुख ही एकमात्र है जिनके जीवन का आनन्द।
- पूर्णानन्द ममत्व नित्य प्रियतम-पद-पंकज में स्वच्छन्द।।
- प्रियतम मन से जिनका मन है, प्रियतम प्राणों से हैं प्राण।
- प्रियतम सेवारत नित श्रवणेन्द्रिय त्वग्-दृग-रसना-घ्राण।।
- नित्य कृष्ण-सेवा-रसरूपा सर्वसद्गुणों की जो खान।
- सर्वसुखों के दाता को भी देती अहंरहित सुख-दान।।
- ऐसी प्रियतम-सुख-स्वरूपिणी, कृष्ण गतात्मा निरहंकार।
- गोपीजन, है भरा हृदय शुचि प्रेम-सुधारस पारावार।।
- जिनके पावन प्रेमामृत-रस-आस्वादन के हित भगवान।
- शरद-निशाओं में मधु मन कर निर्मित रचते रास विधान।।
- पुन्यमयी उन गोपीजन के पदरज में सतकोटि प्रणाम।
- जिसे चाहते उद्धव बनकर लता-गुल्म औषधि अभिराम।।[1]
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