रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 10

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन

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प्रेम-तत्त्व

पूर्ण त्यागमय सर्वसमर्पण का जिनके अनन्य अभिलाष।
निज-सुख-वाच्छा-लेश-गन्ध का त्याग, सहज मन परमोल्लास।।
प्रियतम-सुख ही एकमात्र है जिनके जीवन का आनन्द।
पूर्णानन्द ममत्व नित्य प्रियतम-पद-पंकज में स्वच्छन्द।।
प्रियतम मन से जिनका मन है, प्रियतम प्राणों से हैं प्राण।
प्रियतम सेवारत नित श्रवणेन्द्रिय त्वग्-दृग-रसना-घ्राण।।
नित्य कृष्ण-सेवा-रसरूपा सर्वसद्गुणों की जो खान।
सर्वसुखों के दाता को भी देती अहंरहित सुख-दान।।
ऐसी प्रियतम-सुख-स्वरूपिणी, कृष्ण गतात्मा निरहंकार।
गोपीजन, है भरा हृदय शुचि प्रेम-सुधारस पारावार।।
जिनके पावन प्रेमामृत-रस-आस्वादन के हित भगवान।
शरद-निशाओं में मधु मन कर निर्मित रचते रास विधान।।
पुन्यमयी उन गोपीजन के पदरज में सतकोटि प्रणाम।
जिसे चाहते उद्धव बनकर लता-गुल्म औषधि अभिराम।।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद-रत्नाकर, पद सं0 726

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