गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र- बाल गंगाधर तिलक
पहला प्रकरण
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श्रीमद्भगवद्गीता हमारे धर्म ग्रन्थों में एक अत्यन्त तेजस्वी और निर्मल हीरा है। पिंड ब्रह्माण्ड ज्ञान सहित आत्म विद्या के गूढ़ और पवित्र तत्त्वों को थोड़े में और स्पष्ट रीति से समझा देने वाला, उन्हीं तत्त्वों के आधार पर मनुष्य में पुरुषार्थ की अर्थात आध्यात्मिक पूर्णावस्था की पहचान करा देने वाला, भक्ति और ज्ञान का मेल कराके इन दोनों का शास्त्रोक्त व्यवहार के साथ संयोग करा देने वाला और इसके द्वारा संसार से दुःखित मनुष्य को शांति देकर उसे निष्काम कर्तव्य के आचरण में लगाने वाला गीता के समान बालबोध ग्रंथ, संस्कृत की कौन कहे, समस्त संसार के साहित्य में नहीं मिल सकता। केवल काव्य की ही दृष्टि से यदि इसकी परीक्षा की जाय तो भी यह ग्रंथ उत्तम काव्यों में गिना जा सकता है, क्योंकि इसमें आत्म ज्ञान के अनेक गूढ़ सिद्धांत ऐसी प्रासादिक भाषा में लिखे गये हैं कि वे बूढ़ों और बच्चों को एक समान सुगम हैं और इसमें ज्ञानयुक्त भक्ति रस भी भरा पड़ा है। जिस ग्रन्थ में समस्त वैदिक धर्म का सार स्वयं श्रीकृष्ण भगवान की वाणी से संग्रहित किया गया है उसकी योग्यता का वर्णन कैसे किया जाये? सर्वोपनिषदों गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्॥ अर्थात जितने उपनिषद हैं वे मानो गौ हैं, श्रीकृष्ण स्वयं दूध दुहने वाले ग्वाला हैं, बुद्धिमान अर्जुन उस गौ को पन्हाने वाला भोक्ता बछड़ा (वत्स) है और जो दूध दुहा गया वही मधुर गीतामृत है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नारायण का, मनुष्यों में जो श्रेष्ठ नर है उसको, सरस्वती देवी को और व्यासजी को नमस्कार करके फिर ‘जय’ अर्थात महाभारत को पढ़ना चाहिये- यह श्लोक का अर्थ है। महाभारत (उ. 48, 7-9 और 20-22; तथा वन. 12, 44-46) में लिखा है कि नर और नारायण ये दोनों ऋषि दो स्वरूपों में विभक्त साक्षात परमात्मा ही हैं और इन्हीं दोनों ने फिर अर्जुन तथा श्रीकृष्ण का अवतार लिया। सब भागवत धर्मीय ग्रंथों के आरंभ में इन्हीं को प्रथम इसलिये नमस्कार करते हैं कि निष्काम कर्मयुक्त नारायणीय तथा भागवत धर्म को इन्होंने ही पहले पहले जारी किया था। इस श्लोक में कहीं ‘व्यास’ के बदल ‘चैव’ पाठ भी है। परन्तु हमें यह युक्ति संगत नहीं मालूम होता; क्योंकि, जैसे भागवत धर्म के प्रचारक नर-नारायण को प्रणाम करना सर्वथा उचित है, वैसे ही इस धर्म के दो मुख्य ग्रंथों महाभारत और गीता के कर्ता व्यासजी को भी नमस्कार करना उचित है। महाभारत का प्राचीन नाम ‘जय’ है ( महा. आ. 62.20 ।)
- ↑ (महाभारत , आदिम श्लोक)
- ↑ मभा. अश्वमेध. अ.16. श्लोक. 10-13
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