सपना वर्मा (वार्ता | योगदान) ('<div class="bgsurdiv"> <h3 style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''श्रीरासपंचाध्य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
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01:59, 21 अगस्त 2017 का अवतरण
विषय सूची
श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-चिन्तन-2
शरद्पूर्णिमा की रजनी जब आयी और वृन्दावन की शोभा देखी भगवान ने तो नित्यलीलामय श्रीभगवान का रूप गोपियों के साथ मिलने का उद्दीपन रूप में परिणित हो गया। शरद्पूर्णिमा की रजनी को देखकर व्रजेन्द्रनन्दन को उस कात्यायिनीव्रत अनुष्ठान के परायण व्रजकुमारियों की बात याद आ गयी। और वे आगामी पूर्णिमा को उनका मनोरथ पूर्ण करेंगे-यह अपनी प्रतिश्रुति भी याद आ गयी। यह वचन दिया था। उसके साथ-साथ वृन्दावन की सारी वनभूमि में दिव्य प्रसून कुसुमादि खिल गये। वृन्दावन को इन्होनें परिशोभित कर दिया और सारा वन ऐसी मनोहर मूर्ति में खिल उठा कि उसको देखकर सर्वमन मनोहर व्रजराजनन्दन का मन भी प्रेमवती गोपरमणियों से मिलने को व्याकुल हो उठा। भगवानपि ता रात्रीः ---------- इस श्लोक का ‘शरदोत्फुल्ल मल्लिकाः ता रात्रीः वीक्ष्य’ इस अंश पर विचार करने से यह मालूम होता है कि गोपियों के साथ नित्य मिलन और अनाद्यन्त मिलनेच्छा का यह भाव नवोद्दीपन का संकेत मात्र है। जिस रात्रि के दर्शन से भगवान के अन्दर नित्य मिलन की नवीन उद्दीपना जाग्रत हुई उस अभिनव रात्रि के साथ जागतिक रात्रि जो चार प्रहर वाली होती है इसमें बड़ा भेद। इसलिये ‘ता रात्रीः’ इस बहुवचन से इस बात को स्पष्ट कर दिया है; क्योंकि भगवान ने रात्रि को देखकर गोपरमणियों के साथ मिलने की आकांक्षा की, रासक्रीडा की। उस रात्रि को भागवत में ‘ब्रह्मरात्रि’ कहा गया है।
अब रासक्रीडा से लौटने के वक्त की बात है। भगवान द्वारा रासक्रीडा करते करते ब्रह्म रात्रि का अवसान हो गया तो भगवान के आदेश से श्रीप्रेमवती गोपांगनाएँ अनिच्छापूर्वक अपने-अपने घरों को लौट गयीं। इससे मालूम होता है कि जिस रात्रि में भगवान ने रासक्रीडा की वह रात्रि मृत्युलोक की चार प्रहर वाली रात्रि नहीं। वह रात्रि सहस्र चतुर्युगवाली ब्रह्मरात्रि है। यहाँ रात्रियों के भेद बताते है। कहते हैं उस रात्रि को देखकर श्रीकृष्ण ने मिलन की इच्छा की और उस रात्रि में लीलाशक्ति के प्रभाव से अनन्त ब्रह्माण्डों की अनन्त रात्रियाँ संयुजित हो गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा. 10।33।39
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