होजी हरि कित गये नेह लगाय-मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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मथुरा गमन


राग सोरठ




होजी हरि कित गये नेह लगाय ।।टेक।।
नेह लगाय मेरो मन हर लीयो, रस भरी टेर सुनाय।
मेरे मन में ऐसीं आवै, मरूँ जहर बिस खाय।
छाड़ि गये बिसवासघात करि, नेह केरि नाव चढ़ाय।
मीरां के प्रभु कबरे मिलोगे, रहे मधुपुरी छाय ।।180।।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रसभरी = मधुर व सुरीली। नेह... चढ़ाय = प्रेम के मार्ग में अधबीच छोड़कर। मधुपुरी = मथुरा। छाय रहे = बैठ रहे।

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