कोई स्याम मनोहर ल्योरी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

Prev.png

राग मारू




कोई स्याम मनोहर ल्योरी, सिर धरैं मटकिया डौलै ।।टेक।।
दधि को नाँव बिसर गई ग्वालन, ‘हरिल्यो, हरिल्यो, बोलै।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, चेरी भई बिन मोलै।
कृष्ण रूप छकी है ग्वालनि, औरहि औरै बौलै ।।179।।[1]
 


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कोई = कोई गाहक। मटकिया = मटकी, मिट्टी का छोटा घड़ा। बिसर गई = भूल गई। बिनमोले = बिना मूल्य, बदले में बिना कोई कीमल लिये ही। छकी = तृप्त होकर उन्मत्तसी बनी हुई। औरहिं = कुछ का कुछ, अंडबंड।
    विशेष- उक्त दोनो पदों अर्थात पद (178) में प्रेमोन्मत्त ग्वालिनों की दशा का अच्छा चित्र खींचा गया है। सूरदास के भी कुछ पदों में इस प्रकार के भाव दर्शाये गये है, जैसे, 'ग्वालिनी प्रगटयो पूरन नेहु। दधिभाजन सिर पर धरे, कहति गुपालहि लेहु' इ. अथवा 'गोरस को निज नाम भुलायो। लेहु लेहु कऊ गोपालहिं गलिन गलिन यह शोर मचायो' इ. और 'ग्वालि फिरति बेद्दालहि सों। दधि मटुकी सिर लीन्हे डोलति रसना तट गोपालहिं सों' इ‌.। तथा, 'कोऊ माई लेहैरी गोपालहि। दधि को नाम श्याम सुंदर रस, बिसरि गयो ब्रजबालहि' इ. इ.

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः