श्री गिरधर आगे नाचूंगी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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प्रेमाभिलाषा

राग मालकोस


श्री[1] गिरधर आगे नाचूँगी ।। टेक ।।
नाचि नाचि पिवरसिक[2] रिझाऊँ, प्रेमी जन कूँ जाचूँगी ।
प्रेमप्रीत की बाँधि घूँघरू, सुरत की कछनी काछूँगी ।
लोक लाज कुल की मरजादा, यामें एक न राखूँगी ।
पिव के पलँगा जा पौढूँगी, मीराँ हरि रँग राचूँगी ।। 14 ।।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रघुनन्‍दन
  2. रघुनाथ
  3. पिव रसिक = रसिक श्रीकृष्ण। रिझाऊ = प्रसन्न करूँगी। जाचूँगी = प्रार्थना करूँगी। कछनी काछूँगी = कछोरा पहिनूँगी। सुरत...काछूँगी = ध्यान की साधना साधूँगी। यामें = इनमें से। पिव...पौढूँगी = अपने इष्टदेव के साथ तादात्म्य-सम्बन्ध कर लूँगी। राचूँगी = रंग जाऊँगी।

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