मीराँबाई की पदावली
अपनी टेक राग झिझोटी
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इसके पहले ‘तात,मात, भ्रात, बंधु अपना नहिं कोई ।’ पंक्ति भी मिलती है।
- ↑ इसके पहले चुनरी के किये टूक टूक, ओढ लीन लोई। मोती मूंगे उतार वनमाला पोई ।’ पंक्तियां भी आती हैं ।
- ↑ इसके पहले ‘दूध की मथनिया बड़े प्रेम से बिलोई। माखन जब काढि लियो, छाछ पिये कोई ।’ पंक्तियां भी मिलती हैं ।
- ↑ छाँड़ि दई = छोड़ दी, त्याग दी। कानि = मर्यादा। कहा = क्या। करिहै = करेगा। लोक = समाज। अँसुवन जल = अश्रुविन्दुओं द्वारा। आणँद फल = आनंदस्वरूप परिणाम। भगति = भक्तजन। राजी = प्रसन्न। जगति = संसार की दशा। रोई = दुखी हुई। मोही = मुझे।
विशेष - इस पद का एक दूसरा रूप भी किसी किसी संग्रह में निम्नलिखित ढ़गं से मिलता है:-
'मेर तो दूसरो न कोई।
दूसरो न कोई साधो सकल लोक जोई ॥
भाई छोड्या बन्धु छोड्या छोड्या सगा सोई ।
साध संग बैठ बैठ लोक लाज खोई ॥
भगत देख राजी हुई जगत देख रोई ।
प्रेम नीर सींच सींच विषवेल धोई ॥
दधि मथ धृत काढ़ि लियो डार दई छोई ।
राणा विष का प्याल्यो भेज्यो पीय मगन होई ॥
अब तो बात फैल पड़ी जाणे सब कोई ।
मीराँ राम लगण लागी होणी होय सो होई ॥
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