मेरे तो गिरधर गोपाल -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अपनी टेक

राग झिझोटी


मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई ।
जोके सिर मोर मुकट, मेरो पति सोई ।
छांड़ि[1] दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई ।
संतन ढिग बैठि बैठि, लोक लाज खोई ।
अँसुवन[2] जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई ।
अब तो बेल फैल गई, आणँद फल होई ।
भगति[3] देखि राजी हुई, जगति देखि रोई ।
दासी मीराँ लाल गिरधर, तारो अब मोहीं ।।15।।[4]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसके पहले ‘तात,मात, भ्रात, बंधु अपना नहिं कोई ।’ पंक्ति भी मिलती है।
  2. इसके पहले चुनरी के किये टूक टूक, ओढ लीन लोई। मोती मूंगे उतार वनमाला पोई ।’ पंक्तियां भी आती हैं ।
  3. इसके पहले ‘दूध की मथनिया बड़े प्रेम से बिलोई। माखन जब काढि लियो, छाछ पिये कोई ।’ पंक्तियां भी मिलती हैं ।
  4. छाँड़ि दई = छोड़ दी, त्याग दी। कानि = मर्यादा। कहा = क्या। करिहै = करेगा। लोक = समाज। अँसुवन जल = अश्रुविन्दुओं द्वारा। आणँद फल = आनंदस्वरूप परिणाम। भगति = भक्तजन। राजी = प्रसन्न। जगति = संसार की दशा। रोई = दुखी हुई। मोही = मुझे।
    विशेष - इस पद का एक दूसरा रूप भी किसी किसी संग्रह में निम्नलिखित ढ़गं से मिलता है:-
    'मेर तो दूसरो न कोई।
    दूसरो न कोई साधो सकल लोक जोई ॥
    भाई छोड्या बन्धु छोड्या छोड्या सगा सोई ।
    साध संग बैठ बैठ लोक लाज खोई ॥
    भगत देख राजी हुई जगत देख रोई ।
    प्रेम नीर सींच सींच विषवेल धोई ॥
    दधि मथ धृत काढ़ि लियो डार दई छोई ।
    राणा विष का प्याल्यो भेज्यो पीय मगन होई ॥
    अब तो बात फैल पड़ी जाणे सब कोई ।
    मीराँ राम लगण लागी होणी होय सो होई ॥

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