रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 23

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन

इसमें वर्णन आयेगा कि एक गोपी को नहीं जाने दिया-घरवालों ने रोक दिया, घर के बाहर निकलने नहीं दिया। (यहाँ गोपी के स्वरूप की कुछ छाया देखने को मिलती है।) प्रेमी का तो क्या हुआ? दो चीज साथ हुई उसमें-इतना अपार दुःख हुआ उसे कि जिसकी सीमा नहीं और उसी के साथ-साथ भगवान श्यामसुन्दर का ध्यान हो गया। वो दीखने लगे संसार में जो हमारा रहना है शरीर को लेकर, यह है पाप-पुण्य के कारण से। जिसको ज्ञान होता है, जो पुरुष मुक्त होता है उसमें पाप-पुण्य दोनों का नाश हो जाता है, ज्ञान के द्वारा कर्मनाश। तो उस गोपी के कुछ पुरातन संस्कार थे इसीलिये वह रुकी नहीं। रोक भी नहीं सकते थे घरवाले। परन्तु कुछ संस्कार थे, कुछ जडता थी उसमें।

एक उदाहरण दिया कि एक गोपी थी। उसको रोका गया। उसे भगवान के वियोग में इतना दुःख हुआ कि जो दुष्कर्म उसके शरीर को बनाये रखने वाले थे वे नष्ट हो गये। माने पाप का भोग एक क्षण में हो गया। अब रह गये पुण्य। हम सबमें पाप-पुण्य दोनों हैं। केवल पाप या केवल पुण्य नहीं है। उस गोपी को इतना सुख मिला भगवान के उस ध्यान में कि जिससे उसके पुण्य का फल प्राप्त हो गया। उसका शरीर नष्ट हो गया और शरीर नष्ट होते ही दिव्य देह की प्राप्ति हो गयी और दिव्य शरीर से, गोपी शरीर से वह तुरन्त भगवान के समीप पहुँच गयी औरों से पहले।

यह गोपी भाव। उनका शरीर तो घर में रह गया परन्तु उनके वियोग से उनके सारे पाप कलुष धुल गए और ध्यान में प्राप्त भगवान के प्रेमालिंगन से उनके समस्त पुण्यों का परमफल उन्हें प्राप्त हो गया और वे भगवान के पास सशरीर पहुँचने वाली गोपियों से पहले जा पहुँची। भगवान में मिल गयी। यह गोपियों का स्वभाव है। भगवान बड़े लीलामय एवं लीला नटवर हैं और ये लीला नटवर भी गोपियों के इशारे पर नाचने वाले। भगवान गोपियों के इशारे पर नाचने वाले। ऐसा क्यों? यह बहुत सन्दर बात है। इच्छा यहाँ भगवान की है, गोपियाँ तो केवल भगवान का सुख-सम्पादन करने वाली हैं। लेकिन भगवान की इच्छा ने गोपियों में इच्छा पैदा की। जो उनकी इच्छा से उन्हीं के प्रेमाभान से भगवान ने यह सब लीला की। वंशी बजायी, गोपियों ने उसे सुना, गोपियों ने अभिसार किया और भगवान के पास जब ये आयीं, इच्छा इन्हीं की लेकिन भगवान ने ऐसा स्वांग बनाया वहाँ पर कि मानों भगवान को पता ही नहीं कि गोपियाँ आयी हुई हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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