रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 116

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


आपके यहाँ माल बना है उसमें से कलेवा दे दीजिये। विप्र बोले-हटो यहाँ से, यह यज्ञ है कि कोई ग्वालों का घर है। दूर हटो। अब वे बेचारे डर के मारे बोलेन की हिम्मत नहीं। फिर लौट आये। आ करके बोले, कन्हैया! वहाँ तो मिला नहीं, केवल डाँट मिली। कन्हैया बोले-क्या करें? तो वे बोले भूख लगी है कोई उपाय बताओ। कन्हैया ने कहा-उपाय है कि अब की तुम लोग ब्राह्मण के पास न जाकर उनकी कुटिया के अन्द चले जाओ और वहाँ वो देवियाँ सब हैं ब्राह्मणी-मातायें उनसे जाकर कहो कि मैया! कन्हैया को भूख लगी है तो वे दे देंगी। बच्चे बोले मारेंगी तो नहीं, उनके घर में जायं? बोले, मारेंगी नहीं तो हिम्मत की। कन्हैया की बात तो सबको माननी ही है तो सब गये। अन्दर चले गये। बाह्मणियों ने कहा, लाला! यहाँ कहाँ से आये हो? प्रेम से बोलीं तो बच्चों को बड़ा संतोष मिला कि यहाँ मारने-वारने की बात नहीं। क्यों आये हो लाला? दौड़े-दौड़े आये हो क्या बात है?

बोले मैया! कन्हैया आया हुआ है। बोली, कन्हैया आया हुआ है श्यामसुन्दर? क्या कुछ कहलाया है? बोले, हाँ मैया! बड़ी भूख लगी है उसको और हम सब भूखें हैं। ब्राह्मणियाँ जो जो पकवान बना था उन सबको थाल में सजाकर चलीं। ब्राह्मण बोले कहाँ जा रही हो? सुना ही नहीं किसी ने। पहुँच गयीं वहाँ ले करके। भगवान को देखा, बलदाऊजी के कन्धे पर हाथ दिये खड़े हैं; निहाल हो गयीं देख करके। कहते हैं कि औरों की बात तो अलग रही है विप्र-पत्नियाँ जो थीं यज्ञ-पत्नियाँ यह भी श्रीकृष्णनुरागिणी थी-श्रीकृष्ण में उनका अनुराग था। इसीलिये वे पति-पुत्रादि का त्याग करके केवल श्रीकृष्ण की सेवा के लिये ही तो आयीं थीं, खाना ले करके। उनका और क्या भाव था?

श्रीकृष्ण को सुख मिले, उनकी भूख मिटे, उनको खिलाने के लिये ही तो बढ़िया-बढ़िया चीजें लेकर आयी थीं। और वे पति-पुत्रादि का त्याग करके आयी थीं। वे कृष्णानुरागिणी थीं इसलिये कन्हैया का नाम सुनते ही उनके हृदय में उमंग आ गयी कि भोजन ले चलना है। परन्तु वंचना करने वाली योगमाया तो साथ थी। इस माया की महापरीक्षा में वे पास नहीं हो सकीं। उत्तीर्ण नहीं हो सकीं। भगवान तो साथ में योगमाया को लेकर रहते हैं। गोपियों से भी यही कहा कि तुम आ गयी बड़ा अच्छा किया-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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