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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-चिन्तन-2
बोले मैया! कन्हैया आया हुआ है। बोली, कन्हैया आया हुआ है श्यामसुन्दर? क्या कुछ कहलाया है? बोले, हाँ मैया! बड़ी भूख लगी है उसको और हम सब भूखें हैं। ब्राह्मणियाँ जो जो पकवान बना था उन सबको थाल में सजाकर चलीं। ब्राह्मण बोले कहाँ जा रही हो? सुना ही नहीं किसी ने। पहुँच गयीं वहाँ ले करके। भगवान को देखा, बलदाऊजी के कन्धे पर हाथ दिये खड़े हैं; निहाल हो गयीं देख करके। कहते हैं कि औरों की बात तो अलग रही है विप्र-पत्नियाँ जो थीं यज्ञ-पत्नियाँ यह भी श्रीकृष्णनुरागिणी थी-श्रीकृष्ण में उनका अनुराग था। इसीलिये वे पति-पुत्रादि का त्याग करके केवल श्रीकृष्ण की सेवा के लिये ही तो आयीं थीं, खाना ले करके। उनका और क्या भाव था? श्रीकृष्ण को सुख मिले, उनकी भूख मिटे, उनको खिलाने के लिये ही तो बढ़िया-बढ़िया चीजें लेकर आयी थीं। और वे पति-पुत्रादि का त्याग करके आयी थीं। वे कृष्णानुरागिणी थीं इसलिये कन्हैया का नाम सुनते ही उनके हृदय में उमंग आ गयी कि भोजन ले चलना है। परन्तु वंचना करने वाली योगमाया तो साथ थी। इस माया की महापरीक्षा में वे पास नहीं हो सकीं। उत्तीर्ण नहीं हो सकीं। भगवान तो साथ में योगमाया को लेकर रहते हैं। गोपियों से भी यही कहा कि तुम आ गयी बड़ा अच्छा किया- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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