राणाजी थे जहर दियो म्‍हे जाणी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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परीक्षा



राणाजी थे जहर दियो म्‍हे जाणी ।। टेक ।।
जैसे कंचन दहत अगिन में, निकसत बाराबाणी ।
लोक लाज कुल काण जगत की, दइ बहाय जस पाणी ।
अपणे घर का परदा करले, मैं अबला बौराणी ।
तरकस तीर लग्‍यो मेरे हियरे, गरक गयो सनकाणी ।
सब संतन पर तन मन वारो, चरण कँवल लपटाणी ।
मीराँ को प्रभु राखि लई है, दासी अपणी जाणी ।।41।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. थे = तुमने। म्हे = मैं। जाणी = जान गई। दहत = तपाया जाता है। बांरावाणी = बारह वानी ( बारह सूर्यों के समान दहक वाला ), खरा, चोखा। जगत की = सांसारिक वा समूची, कुल। तरकस तीर = तरकस के तीर सदृश। गरक = गर्क हो गया, प्रवेश कर गया। सनकाणी = सनक गई वा पागली हो गई।

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