राणा जो म्‍हांरी प्रीत पुरबली मैं कांई करूं -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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परीक्षा

राग पीलू


राणा जो म्‍हाँरी प्रीत पुरबली मैं काँई करूँ ।। टेक ।।
राम नाम बिन घड़ी न सुहावे, राम मिले म्‍हाँरा हियरा ठराय ।
भोजनियाँ नहिं भावे म्‍हाँने, नींदलड़ी नहिं आय ।
बिषको प्‍यालो भेजियोजी, जावो मीरा पास ।
कर चरणामृत पीगई, म्‍हाँरे रामजी के विस्‍वास ।
छापा[1] तिलक बनाविया जी, मन में निस्‍चय धार ।
रामजी काज सँवारिया, म्‍हाँने भावे गरदन मार ।
पेटयां बासक भेजिया जी, यो छै मोती डाँरो हार ।
नाग गले में पहिरिया, म्‍हाँरे महलाँ भयो उजार ।
राठौडाँरी धीयड़ी जी, सीसोद्यांरे साथ ।
ले जाती बैकुंड कूँ म्‍हाँरी नेक न मानी बात ।
मीराँ दासी राम की जी, राम गरीब निवाज ।
जन मीराँ को राखज्‍यों, कोई बाँह गहे की लाज ।।42।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसके पहले दो और पंक्तियाँ भी मिलती हैं:-
    बिष का प्‍याला पीगई जो, भजन करे राठौर ।
    थाँरी मारी ना मरूँ, म्‍हाँरो राखणहारो और ।
  2. पुरवली = पूर्व जन्म की। घड़ी = एक क्षण भी। ठराय = शीतल हो जाता है। भेजनियाँ = खानपान। म्हाँने = अपने। छापा... बना बियाजी = छापा तिलक धारण कर लिया। पेट्याँ = पेटी में = पिटारी में। वासक = वासुकी अर्थात् सर्प। महलाँ = महलों में। राठौड़ा = राठौरों वा राठौर वंश वालों की। धीयड़ी = लड़की। मोतीडाँरो = मोतियों का। राखज्यो = रख लीजिये।

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