मीरां लागो रंग हरी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अपना मार्ग


राग पटमंजरी


मीराँ लागो रंग हरी, औरन[1]रँग अटक परी ।। टेक ।।
चूड़ो म्‍हाँरे तिलक अरु माला, सील बरत सिणगारो ।
और सिंगार म्‍हाँरे दाय न आवै, यो गुर ग्‍यान हमारो ।
कोई निन्‍दो कोई बिन्‍दो म्‍हे तो, गुण गोबिद का गास्‍याँ
जिण मारग म्‍हाँरा साध पधारै, उण मारग म्‍हे जास्‍याँ ।
चोरी न करस्‍याँ जिव न सतास्‍याँ, काँई करसी म्‍हाँरो कोई ।
गजसे उतरके खर नहिं चढ़स्‍याँ, ये तो बात न होई[2] ।।23।।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सब्र
  2. कहीं-कहीं इसके आगे और भी कुछ पंक्तियाँ मिलती हैं ।
  3. मीराँ = मीरा को। रंगहरी = हरि वा कृष्ण का रंग अथवा हरा रंग अटक = बाधा, रुकावट। औरन...परी = ( हरे के अतिरिक्त ) अन्य रंगों के लगने में अब अड़चन पड़ गई। चूड़ो = चूडि़याँ। सील बरत = शील व व्रत, आचार व्यवहार। सिणगारो = श्रृंगार। दाय = पसंद। गुरग्यान = गुरु का दिया ज्ञान। विन्दो = वन्दो, प्रशंसा करो। गास्याँ = गावेंगी। करसी = करेगा। चढ़स्याँ = चढ़ेंगी। गज...होई = अब ऐसी बात नहीं हो सकती कि मैं एक बार कृष्ण को अपना कर फिर विषयों की ओर उन्मुख होने चलूँ। विशेष - हरे रंग पर दूसए किसी रंग का चढ़ना कठिन है।

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