मीराँबाई की पदावली
विरह निवेदन राग देश
पिया मोहिं दरसण दीजै हो । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बेर बेर = बार बार, निरन्तर। टरेहूँ = पुकरती रहती हूँ। अहे = अहो, अजी। क्रिपा = कृपा। महीने = मास में। पंछी = पक्षियों को। होई = हुआ करता है। असाढ़ाँ = आषाढ़ मास में। कुरलहे = करुण शब्द करते हैं। घन... सोई हो = (और) चातक भी मेघों के प्रति वही ( उसी प्रकार करुण शब्द ) करते हैं। झड़ = वर्षा की झड़ी। लागियौ = लगती है। तीजाँ = राजस्थान में प्रचलित श्रावण शुक्ला तीज का त्यौहार। भादरवै = भादो मास में। दूरी... हो = दूर मत रक्खे, अलग न हो। ही = हृदय में। झेलती = हज़म करती वा धारण करती है। आसोजाँ = अश्विन वा क्वार मास में भी। सोई हो = वही होता है। देव = विष्णु भगवान्। काती = कार्तिक मास में। पूजहे = पूजते हैं। मेरे... हो मेरे देव तुम्ही हो। मगसर = मार्गशीर्ष वा अगहन मास में। ठण्ड = शीत। बहोती = बहुत ही। सम्हालो = याद करना, सुधिलो। पोस मही = पौष वा पूस मास में। पाला = पाला, कड़ी शीत। अब ही = अभी। न्हालरे = आकर देख जाओ। महामहीं = माघ मास में। फागाँ = होली के गीत। खेल हैं = खेलते हैं। वणराइ = वनराज, जंगल के जंगल। जरावै हो = जलाती वा कष्ट पहुँचाती है। ऊपजी = इच्छा उत्पन्न हुई। फूलवै = फूलती वा पुष्पित हो जाती है। कुरलीजै = करुण शब्द करती है। काग... गया = प्रतीक्षा में काग उड़ा-उड़ा कर शकुन विचारा करती हूँ। बूझूँ = पूछा करती हूँ। पिंडत जोसी =पंडित व ज्योतिषी। होसी = होगा।
विशेष - विरहिणी द्वारा प्रत्येक मास की प्राकृतिक विशेषताओं के वर्णन कराये जाने से यह पद 'बारह मासे का गीत' माना जा सकता है।
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