गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 81

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 2

अत्यन्त अल्पज्ञ जीव स्वयं अपने ही अपरिगणित जन्म-कर्म से अनभिज्ञ है। फलतः प्रकृति एवं जीव दोनों ही कर्म-फल-दाता होने में समर्थ नहीं। स्वयं कर्म भी कर्म-फल-दाता होने में समर्थ नहीं। देह, मन, बुद्ध एवं अहंकार के विभिन्न क्रिया-कलाप ही कर्म हैं। अस्तु कर्म जड़ है अतः शास्त्रोक्त क्रिया-कलाप से अज्ञ हैं। परिशेषात् परमेश्वर प्रभु की एकमात्र कर्म-फल-दाता हैं तथापि स्वतन्त्र रूप से फल-दाता भी न होने के कारण वेषम्यदोष से सर्वथा मुक्त हैं। ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करे सा तस फल चाखा।’ अतः सापेक्ष कर्म की सार्थकता निर्विवाद है। एतावता शब्द, स्पर्श, रूप, रस तथा गन्धात्मक सम्पूर्ण लौकिक सुखों के भी प्रेरक भगवान् हैं तथा ब्रह्म-संस्पर्श की कामना के भी प्रेरक भगवान् ही हैं अतः स्वप्रकाश, सर्वाधिष्ठान प्रभु ही सम्पूर्ण रति के प्रेरक ‘सुरतनाथ’ हैं।

एका कथा है। कोई गोपांगना अपने सिर पर दही भरी मटकी रखे हुए सन्ध्या-वेला तक नन्द-भवन के चारों ओर डोलती रही; यह देख नन्दरानी ने उसको बुलाकर पूछा, “क्यों, सखी! क्या तुम्हारा दही नन्द-भवन में ही बिकता है? क्या तुम्हारे घर तुम ही एक सयानी हो?” अभी नन्दरानी गोपांगना को उलाहना दे ही रही थीं कि बालकृष्ण दौड़ते हुए आकर उससे लिपट गये; गोप-बाला कृतार्थ हो गयी। तात्पर्य कि गोपालियाँ निरन्तर श्रीकृष्ण में ही तन्मय रहती हैं। भक्तजन कहते हैं-

रत्नाकरस्तव गृहं, गृहिणी च पद्मा।
किं देयमस्ति भवते, भुवनेश्वराय।।
आभीर-वाम-नयनाहृतमानसाय।
दत्तं मनो यदुपते! कृपया गृहाण।।[1]

अर्थात् हे प्रभो! अनन्तानन्त रत्नों का आकर, रत्नाकर क्षीर-समुद्र आपका निवास-स्थान है, ब्रह्माण्ड को अधिष्ठात्री महालक्ष्मी पद्मा आपकी गृहिणी है, आप स्वयं अनन्तानन्त ब्रह्माण्ड के अधीश्वर हैं। हम आपको क्या दे सकते हैं? हे भगवान्! मैं अपना मन आपको समर्पित करता हूँ। आप मेरा मन ले लें क्योंकि आभीर-बालाओं ने आपके मन को चुरा लिया है। वेद-वाक्य है-

‘अप्राणोह्यमनाः शुभ्रो ह्यक्षरात् परतः परः।’[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रहीम-रत्नावली
  2. मुण्डक. 2/1/2

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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