गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 2‘गोपाल-चम्पू’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ में लिखा है कि जैसे आकाश में चन्द्रमा के उदय होते ही सरोवरस्थिता कुमुदिनी प्रफुल्लित हो उठती है वैसे ही नन्द भवन में परमानन्द आनन्दकन्द श्रीकृष्णचन्द्र के आविर्भाव से गोपबालाएँ प्रफुल्लित हो उठीं। जन्मान्तर-संस्कारवशात् ये गोप-बालिकाएँ जन्म से ही कृष्णचन्द्रानुरागिणी हुईं; बाल्यकाल में ही उनके अन्तःकरण, अन्तरात्मा, प्राण एवं रोम-रोम कृष्णमय हो गये। जहाँ अंग-प्रत्यंग में सांग-श्यामांग समाविष्ट हों वहाँ अनंग-सन्निवेश का अवकाश ही कहाँ? श्रीकृष्ण-मिलन की अत्यन्त उत्कट कामना से वशीभूत हो इन गोप-कन्याओं ने कात्यायनी-अर्चन किया। भगवान् श्रीकृष्ण प्रकट हुए, गोप-कन्याओं के परिधान का हरण किया। जैसे प्रज्वलित काष्ठसमूह में निक्षिप्त काष्ठखण्ड में अग्नि स्वभावतः ही व्यक्त हो जाती है वैसे ही शुद्ध, निरावरण परब्रह्म भगवान् श्रीकृष्ण से संस्पृष्ट परिधानों को धारण कर उन गोप-बालाओं ने अनायास ही ब्रह्म-संस्पर्श सुख का अनुभव किया; फलतः उनमें श्रीकृष्ण-सम्मिलन की उत्कट उत्कण्ठा का लोकोत्तर विकास हुआ। गोपांगनाएँ कहती हैं, हे श्यामसुन्दर! आप ही शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गन्धात्मक सम्पूर्ण सुख-सम्भोग के अधिपति हैं, आप ही हमारी सम्भोग-सुख-कामना के प्रेरक हैं और आप ही ने सम्भोग-सुख की याच्ञा कर हमारी कामना को अभिवृद्धिंगत किया है; कात्यायनी-व्रत प्रसंग से ‘मयेमारंस्यथ क्षपाः; इमा रात्रयः, क्षपाः हमा क्षपा मया रंस्यथः’ इन रात्रियों में तुम हमारे संग रमण करोगी; ऐसा वरदान देकर आपने ही हमारी कामनाओं को दृढ़ीभूत किया; आपके द्वारा वरदान में दी गयी वही अनन्त-सौन्दर्य-माधुर्य दिव्य ब्राह्म रात्रियाँ मूर्तिमती हो प्रत्यक्ष हो रही हैं; आप द्वारा प्रदत्त वरदान के कारण भी हे वरद! हम गोप-कन्याओं के लिए आपका प्राकट्य होना ही चाहिए। ‘एष उ भामनी शेभनानि कर्मफलानि नयनीति प्रापयतीति भामनी’; शोभन कर्मफलों को प्राप्त कराने वाला भगवान् ही भामनी है, भगवान् ही वामनी है, सर्वज्ञ, सर्वेश्वर, सर्वशक्तिमान् भगवान ही शुभाशुभ कार्य के फल-दाता हैं। प्रकृति जड़ है; अतः अनन्त ब्रह्माण्ड के अनन्तानन्त प्राणियों से तथा प्रत्येक प्राणी के अनेकानेक जन्म-कर्म से अज्ञ है। |