विषय सूची 1 श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' 2 अध्याय 10 पद 11-15 3 टीका टिप्पणी और संदर्भ 4 संबंधित लेख श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' अध्याय 10 पद 11-15 उनके हृदय में बैठ पार्थ! कृपार्थ अपने ज्ञान का। दीपक जलाकर नाश करता तम सभी अज्ञान का॥11॥ अर्जुन बोले- तुम परम-ब्रह्म पवित्र एवं परमधाम अनूप हो। हो आदिदेव अजन्म अविनाशी अनन्त स्वरूप हो॥12॥ नारद महामुनि असित देवल व्यास ऋषि कहते यही। मुझसे स्वयं भी आप हे जगदीश! कहते हो वही॥13॥ केशव! कथन सारे तुम्हारे सत्य ही मैं मानता। हे हरि! तुम्हारी व्यक्ति सुर दानव न कोई जानता॥14॥ हे भूतभावन भूत-ईश्वर देवदेव जगत्पते। तुम आप पुरुषोत्तम स्वयं ही आपको पहचानते॥15॥ टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' पहला अध्याय (1) · द्वितीय अध्याय (2) · तृतीय अध्याय (3) · चतुर्थ अध्याय (4) · पंचम अध्याय (5) · षष्टम अध्याय (6) · सातवाँ अध्याय (7) · आठवाँ अध्याय (8) · नौवाँ अध्याय (9) · दसवाँ अध्याय (10) · ग्यारहवाँ अध्याय (11) · बारहवाँ अध्याय (12) · तेरहवाँ अध्याय (13) · चौदहवाँ अध्याय (14) · पंद्रहवाँ अध्याय (15) · सोलहवाँ अध्याय (16) · सत्रहवाँ अध्याय (17) · अठारहवाँ अध्याय (18) वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः