हरिगीता अध्याय 10:11-15

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 10 पद 11-15

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उनके हृदय में बैठ पार्थ! कृपार्थ अपने ज्ञान का।
दीपक जलाकर नाश करता तम सभी अज्ञान का॥11॥

अर्जुन बोले-
तुम परम-ब्रह्म पवित्र एवं परमधाम अनूप हो।
हो आदिदेव अजन्म अविनाशी अनन्त स्वरूप हो॥12॥

नारद महामुनि असित देवल व्यास ऋषि कहते यही।
मुझसे स्वयं भी आप हे जगदीश! कहते हो वही॥13॥

केशव! कथन सारे तुम्हारे सत्य ही मैं मानता।
हे हरि! तुम्हारी व्यक्ति सुर दानव न कोई जानता॥14॥

हे भूतभावन भूत-ईश्वर देवदेव जगत्पते।
तुम आप पुरुषोत्तम स्वयं ही आपको पहचानते॥15॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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