हरिगीता अध्याय 14:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 14 पद 1-5

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श्रीभगवान ने कहा-
बोले अतिश्रेष्ठ ज्ञानों में बताता ज्ञान मैं अब और भी॥
मुनि पा गये हैं सिद्धि जिसको जानकर जग में सभी॥1॥

इस ज्ञान का आश्रय लिए जो रूप मेरा हो रहें॥
उत्पत्ति-काल न जन्म लें, लय-काल में न व्यथा सहें॥2॥

इस प्रकृति अपनी योनि में, मैं गर्भ रखता हूँ सदा॥
उत्पन्न होते हैं उसी से सर्व प्राणी सर्वदा॥3॥

सब योनियों में मूर्तियों के जो अनेकों रूप हैं॥
मैं बीज-प्रद पिता हूँ, प्रकृति योनि अनूप हैं॥4॥

पैदा प्रकृति से सत्त्व, रज, तम त्रिगुण का विस्तार है॥
इस देह में ये जीव को लें बांध, जो अविकार है॥5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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