हरिगीता अध्याय 18:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 18 पद 1-5

Prev.png

अर्जुन ने कहा-
संन्यास एवं त्याग-तत्त्व, पृथक महाबाहो! कहो॥
इच्छा मुझे है हृषीकेश, समस्त इनका ज्ञान हो॥1॥

श्रीभगवान ने कहा-
सब काम्य-कर्मन्यास ही संन्यास ज्ञानी मानते॥
सब कर्मफल के त्याग ही को त्याग विज्ञ बखानते॥2॥

हैं दोषवत् सब कर्म कहते त्याज्य कुछ विद्वान् हैं॥
तप दान यज्ञ न त्यागिये कुछ दे रहे यह ज्ञान हैं॥3॥

हे पार्थ! सुन जो ठीक मेरा त्याग हेतु विचार है॥
हे पुरुषव्याघ्र! कहा गया यह त्याग तीन प्रकार है॥4॥

मख दान तप ये कर्म करने योग्य, त्याज्य न हैं कभी॥
मख दान तप विद्वान् को भी शुद्ध करते हैं सभी॥5॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः