हरिगीता अध्याय 3:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 3 पद 1-5

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अर्जुन ने कहा-
यदि हे जनार्दन! कर्म से भी बुद्धि कहते श्रेष्ठ हो।
तो फिर भयंकर कर्म में, मुझको लगाते क्यों कहो॥1॥

उलझन भरे कह वाक्य, भ्रम-सा डालते भगवान् हो।
वह बात निश्चय कर कहो, जिससे मुझे कल्याण हो॥2॥

श्रीभगवान् बोले-
पहले कही दो भाँति निष्ठा, ज्ञानियों की ज्ञान से।
फिर योगियों की योग-निष्ठा, कर्मयोग विधान से॥3॥

आरम्भ बिन ही कर्म के, निष्कर्म हो जाते नहीं।
सब कर्म ही के त्याग से, कभी सिद्धि जन पाते नहीं॥4॥

बिन कर्म रह पाता नहीं, कोई पुरुष पल भर कभी।
हो प्रकृति-गुण आधीन, करने कर्म पड़ते हैं सभी॥5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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