श्री लाल कछु कीजे भोजन तिल तिल कारी हों वारी हों।
अब जाय बैठो दोउ भैया नंदबाबा की थारी हो॥1॥
कहियत हे आज सक्रांति भलो दिन करि के सब भोग संवारी हो।
तिल ही के मोदक कीने अति कोमल मुदित कहत यशुमति महतारी॥2॥
सप्तधान को मिल्यो लाडिले पापर ओर तिलवरी न्यारी।
सरस मीठो नवनीत सद्य आज को तिल प्रकार कीने रुचिकारी॥3॥
बैठे श्याम जब जेमन लागे सखन संग दे दे तारी।
परमानंद दास तिहि औसर भरराखे यमुनोदक झारी॥4॥