यह मांगो गोपीजन वल्लभ ।
मानुस जन्म और हरि सेवा, ब्रज बसिबो दीजे मोही सुल्लभ ॥1॥
श्री वल्लभ कुल को हों चेरो, वल्लभ जन को दास कहाऊं ।
श्री जमुना जल नित प्रति न्हाऊं, मन वच कर्म कृष्ण रस गुन गाऊं ॥2॥
श्री भागवत श्रवन सुनो नित, इन तजि हित कहूँ अनत ना लाऊं ।
‘परमानंद दास’ यह मांगत, नित निरखों कबहूँ न अघाऊं ॥3॥