गोपी प्रेम की ध्वजा -परमानंददास

गोपी प्रेम की ध्वजा -परमानंददास

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गोपी प्रेम की ध्वजा ।
निज गोपाल किते अपने वश उरधर श्याम भुजा ॥1॥
शुक मुनि व्यास प्रशंसा कीनी ऊधो संत सराही ।
भुरि भाग्य गोकुल की वनिता अति पुनीत भवमांहि ॥2॥
कहा भयो जो विप्रकुल जनम्यो जो हरिसेवा नाही ।
सोई कुलीन दास परमानंद जो हरि सन्मुख धाई ॥3॥

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