रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 193

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

दूसरा अध्याय

Prev.png
इमान्यधिकमग्नानि पदानि वहतो वधूम्।
गोप्यः पश्यत कृष्णस्य भाराक्रान्तस्य कामिनः।।32।।

उससे कुछ आगे बढ़ने पर उनमें से एक ने कहा - अरी गोपियों! देखों तो यहाँ श्रीकृष्ण के चरण कमल पृथ्वी में गहरे धँसे हुए दिखायी देते हैं। निश्चय ही वे प्रेम विह्ल श्याम सुन्दर उस गोप वधू को अपने कंधे पर चढ़ाकर ले गये हैं, उसी के भार से उनके ये चरण जमीन में धँस गये हैं।।32।।

अत्रावरोपिता कान्ता पुष्पहेतोर्महात्मना।
अत्र प्रसूनावचयः प्रियार्थे प्रेयसा कृतः।
प्रपदाक्रमणे एते पश्यतासकले पदे।।33।।

सखियों! महात्मा (नित्य काम विजयी) श्यामसुन्दर ने प्रेमवश यहाँ पुष्प चयन करने के लिये अपनी प्रेयसी को कंधे से नीचे उतार दिया है और उन परम प्रेमी व्रज राजकुमार ने अपनी प्रिया का श्रृंगार करने के लिये उचक-उचक कर पुष्पों का चयन किया है, इससे उनके चरणों के पंजों के ही चिह्न पृथ्वी पर उभर पाये हैं। देखो तो यहाँ वे अधूरे चरण चिह्न दिखायी दे रहे हैं।।33।।

केशप्रसाधनं त्वत्र कामिन्याः कामिना कृतम्।
तानि चूडयता कान्तामुपविष्टमिह ध्रुवम्।।34।।

देखो! यहाँ उन प्रेमी श्री श्याम सुन्दर ने उस प्रेमिका के केश सँवारे हैं और निश्चय ही यहाँ बैठकर उन्होंने अपने कर - कमलों द्वारा चुने हुए पुष्पों द्वारा अपनी कान्ता को चूड़ामणि से सजाया है।।34।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः