म्‍हाँरे घर होता जाज्‍यो राज -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग सिंध भैरवी


म्‍हाँरे घर होता जाज्‍यो राज ।।टेक।।
अब के जिन टाला दे जावो, सिर पर राखूँ बिराज ।
म्‍हे तो जनम-जन्‍म की दासी, थे म्‍हाँका सिरताज ।
पावणड़ा म्‍हाँके भलाँ ही पधारो, सब ही सुधारण काज ।
म्‍हे तो बुरी छाँ थाँके भली छै घणेरी, तुम हो एक रमराज ।
थाँमे हम सबहिन की चिंता तुम, सबके हो गरिब निवाज ।
सबके मुगट सिरोमनि सिर पर, मानुँ पुण्‍य की पाज ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, बाँह गहे की लाज ।।109।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. होता जाज्यो = होता जाना वा होते जाइयेगा। राज = आप। अब के = अब की बार। जिन = मत। टाला दे जावो = टाल जाओ। राखूँ विराज = आदर के साथ बिठा रक्खूँगी। थे = आप। म्हाँका = हमारे, मेरे। सिरताज = मुकुट, अग्रगण्य। पावणड़ा = पाहुने, अतिथि। म्हाँके = हमारे। भलाँ = भले, अवश्य। सुधारण काज = सुधारने के लिए। छाँ = है। थाँके = आपके। घणेरी = बहुतेरी। रसराज = रसिक। म्हेतो... रसराज = तुम तो एकमात्र रसिक शिरोमणि हो और मैं बुरी भी हूँ तो तुम्हारे यहाँ बहुतेरी अच्छी अच्छी भी वर्तमान हैं। सबहिन = सभी। गरिबनिवाज = दीनों का पालन करने वाले। मुगट = मुकुट, सिरताज। मानुँ = मानो। पाज = राशि वा मर्यादा।

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