कबहूँ मिलेगो मोहि आई -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन


कबहूँ मिलेगो मोहि आई, रे तूँ जोगिया ।।टेक।।
तेरे कारण जोग लियो है, घरि-घरि अलख जगाई ।
दिवस न भूख रैण नहिं निंदरा, तुम बिनु कछू न सुहाई ।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, मिलि करि तपति बुझाई ।।110।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कबहूँ = कभी तो। जोगिया = जोगि, प्रियतम। अलख जगाई = पुकार पुकार कर अप्रत्यक्ष परमात्मा का स्मरण दिलाती हुई भीख माँगती फिरी। तपति- ज्वाला।

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