मीराँबाई की पदावली पृ. 35

मीराँबाई की पदावली

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भाषा

1. उच्चारण की विशेषतायें

  1. ‘ल’ का उच्चारण कहीं ‘ल’ और, कहीं-कहीं वैदिक, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं की भाँति, मूर्धनय ‘ल’ के रूप में होता है।
  2. मूर्धन्य - ‘ष’ तथा ‘ख’ का उच्चारण सदा ‘ख’ तथा ‘श’ का अधिकतर ‘स’ एवं ‘य’ का ‘ज’ के रूप में हुआ करता है।
  3. ‘छ’ का उच्चारण ‘स’ से मिलता जुलता होता है।
  4. डिंगल भाषा का मुख्य चिह्न ‘ड’ वर्ण, स्वार्थिक प्रत्यय की भाँति, इसकी संज्ञाओं में बहुधा लग जाया करता है।
  5. अनुस्वार व अनुनासिक के स्थान पर सदा अनुस्वार के ही प्रयोग देखे जाते हैं; और
  6. जिन शब्दों में हिन्दी में ‘न’ प्रयुक्त होता है उनमें राजस्थानी में प्रायः ‘ण’ कर दिया जाता है।


2. बहुवचन बनाने के नियमों में विशेषतायें

  1. हिन्दी के प्रायः सभी पुल्लिंग आकारान्त शब्द राजस्थानी में ओकारान्त हो जाते हैं और उनका बहुवचन हिन्दी की भाँति एकारान्त न होकर, आकारान्त हो जाता है, जैसे - दूसरों से दूसरा, म्हांरो से म्हांरा, नेहरों से नेहरा, रूट्यो से रूट्या, आदि।
  2. आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन बनाने के लिए ‘आं’ वा ‘आवां’ प्रत्यय लगाये जाते हैं, जैसे- माला ये मालां अथवा मालवां।
  3. इकारान्त वा ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के बहुवचन बनाते समय ‘यां’ वा ‘इयां’ प्रत्यय लगते हैं; जैसे- सहेली से सहेल्याँ वा सहेलियां।
  4. उकारान्त वा ऊकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन बनाने के लिए ‘वां’ वा ‘उवां’ प्रत्यय लगाये जाते हैं; और
  5. अन्य शब्दों के बहुवचन प्रायः एकवचन से ही होते हैं। अकारान्त शब्दों के बहुवचन में ‘आं’ प्रत्यय ही लगते हैं, जैसे- नैण से नैणां।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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