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भाषा
3. विभक्ति प्रयोग की विशेषतायें
- करण वा अपादान कारक में, अधिकतर विकारी रूपों के आगे, सूँ, से सें, ते, तें वा तैं के विभक्ति चिह्नों का प्रयोग होता है, जैसे- म्हां सूँ कालव्याल सूँ, आदि।
- कर्म व सम्प्रदानकारक में, अधिकतर विकारी रूपों के आगे, नूँ, नुँ, ने, कूँ, कौ, को वा हि के विभक्ति चिह्नों का प्रयोग होता है, जैसे - रमैया ने, ज्याँकूँ, त्याँकूँ, आदि।
- अधिकरण कारक में, अधिकतर विकारी रूपों के आगे, मैं, में, मां, इ, ए अथवा पै, पर, परि, विच, माँह , माँहिने, महीँ, मँझार आदि विभक्ति चिह्नों वा शब्दों के प्रयोग हुआ करते हैं, जैसे - उरि, लोक मँझार, आदि।
- सम्बन्ध कारक में, अधिकतर विकारी रूपों के आगे पुल्लिंग में, रो, को, नो, व स्त्रीलिंग में री, की, नी, दी के विभक्ति चिह्नों के प्रयोग होते हैं, जैसे- मोतीडांरो, संतोंनी, आदि।
- कविता में विभक्तियों का प्रायः लोप भी हो जाया करता है, जैसे:-
कर्म कारक - नैणां वाण पड़ीं;[1] लियो गोविन्दो मोल;[2]
कारणकारक- नैणां रस पीजै हो;[3]
अपादान कारक- प्रीति कियाँ दुख होइ;[4]
सम्बन्ध कारक- तुम चरणाँ आधार;[5]
अधिकरण कारक- वरणाँ लिपट परूँरी;[6] ज्याँ देसाँ[7] आदि
4. सर्वनाम की विशेषतायें
1. उत्तम पुरुष ‘हूँ’ = मैं
कर्ता कारक - म्हे, म्हाँ, हम;
करण व अपादन- मोसूँ, म्हासूँ;
कर्म व संप्रदान- मने, म्हाँने, मोकूँ,
अणिकरण - मोपरि, हम पर;
सम्बन्ध- मो, म्हाँरो, म्हाँरा, मोरा;
2. मध्यम पुरुष ‘तू’-
कर्ता कारक - थे, तुम;
करण व अपादान- तोसूँ, तोसें;
कर्म व संप्रदान- थाने, तोई;
सम्बन्ध- थारो, थाँरो, थाँको, तुमरी, रावरी;
वो = वह यो = यह कुण = कौन जो = जौन, अन्य पुरुष
वे, सो, ऊ, यो, ये,ए, कुण, कूँण जो, जे;
ओहि, उण; इण, इन किण, किस जिण, जा, जिन, जिस;
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