माई मेरो मोहने मन हर्यो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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पनघट लीला




माई मेरो मोहने मन हर्यो ।। टेक ।।
कहा करूँ कि‍त जाऊँ सजनी, प्रान पुरुस सूं वर्यो ।
हूँ जल भरने जात थी सजनी, कलस माथे धर्यो ।
साँवरी सी किसोर मूरत, कछुक टोनो कर्यो।
लोक लाज बिसारि डारी, तबहीं कारज सर्यो।
दासि मीराँ गिरधर, छान ये घर वर्यो ।।174।।[1]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रेमनी = प्रेम की। मने = मुझे, मेरे हृदय में। भरवागयाँताँ = भरने गई थी। हती = थी। हेमनी = सोने की। काचेते तातणो = कच्चे धागे से अर्थात प्रेम बंधन द्वारा। जेम = जैसे, जिस ओर। तेमतेमनी = वैसे ही, ठीक उसी ओर (जाती हूँ) (देखो- ‘सालूरा पांणी बिना रहइ विलक्खा जेम। ढाढी, साहिब सूँ कहइ, मोमन तो विण एम’- ढोला मारू रा दूहा)। शाम की = साँवरी। शुभ = भली, मनोहर। एमनी = ऐसा ही है।

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