भींजे म्‍हाँरो दाँवन चीर -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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आशा कि‍‍रण


भींजे म्‍हाँरो दाँवन चीर, सावणियो लूम रह्यो रे ।। टेक ।।
आप तो जाय विदेसाँ छाये, जिवड़ो धरत न धीर ।
लिख लिख पतियाँ सँदेसा भेजूँ, कब घर आवै म्‍हाँरो पीब ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, दरसन दोने बलबीर ।।123।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दाँवन चीर = पल्ले का कपड़ा अथवा चीर का पल्ला। सावणियो = सावन के मेघ वा मेघमाला। लूम रह्यो = छा रही है। सावणियो... रह्योरे = सावन के बादल झुककर बरस रहे हैं। दोने = देओ। बलबीर = बल देव के भाई अर्थात् श्रीकृष्ण।

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