कोई कहियौरे प्रभु आवन की -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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आशा कि‍‍रण

राग कोसी


कोई कहियौरे प्रभु आवन की ।
आवन की मनभान की, कोई० ।। टेक ।।
आप न आवै लिख नहिं भेजै; बाँण पड़ी ललचावन की ।
ए दोइ नैण कह्यौ नहिं मानै, नदिया बहै जैसे सावन की ।
कहा करूँ कछु नहिं बस मेरो, पाँख नहीं उड़ जावन की ।
मीराँ कहै प्रभु कबर मिलोगे, चेरी भइ हूँ तेरे दाँवन की ।। 122 ।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बाँण = वानि, स्वभाव। ललचावन की = ललचाने वा लुभाने की। ए = ये। नदिया... सावन की = सावन की नदियों की भाँति इन में आँसू उमड़ आते हैं। उड़ जावन = उड़ जाने, शीघ्र पहुँच जाने की। दाँवन = दामन, पल्ला, सहारा।

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