मेरे प्रीतम प्‍यारे राम कूँ -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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आशा कि‍‍रण


मेरे प्रीतम प्‍यारे राम कूँ[1], लिख भेजूँ रे पाती ।। टेक ।।
स्‍याम सनेसो कबहुँ न दीन्‍हौ, जानि बूझ गुझबाती ।
डगर[2] बुहारूँ पंथ निहारूँ, जोइ जोइ अखियाँ राती ।
राति[3] दिवस मोहि कल न पड़त है, हीयो फटत मेरी छाती ।
मीरा[4] के प्रभु कबर मिलोगे, पूरब जनम का साथी ।।124।।[5]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ने
  2. ऊँची चढ़ चढ़ पंथ निहारूँ रोय रोय अखियाँ राती
  3. तुम देख्‍याँ बिन, इ०
  4. कहे
  5. - कूँ = को, के नाम। जानि बूझ = समझ बूझ कर। गुझवाती = गुह्य वा गुप्त बात। स्याम... गुझवाती = श्रीकृष्ण ने कुछ समझ बूझ कर ही मौन धारण कर रक्खा है। जोइ जोइ = देखते देखते। हीयो = हृदय। छाती = छाती के भीतर। पूरब... साथी = पूर्वजन्म के संबंध की ओर निर्देश। दे० विशेष पद (19)।

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