जोगिया जी छाइ परदेस -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहानुभव


जोगिया जी छाइ रह्या परदेस ।। टेक ।।
जबका बिछड़या फेरन मिलिया, बहोरि न दियो संदेस ।
या तन ऊपरि भसम रमाऊँ, खोर करूँ सिर केस ।
भगवाँ भेख धरूँ तुम कारण, ढूँढत च्‍यारूँ देस ।
मीराँ के प्रभु राम मिलण कूँ, जीवनि जनम अनेस ।।70।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छाई रह्या = टिक रहा ( देखो - ‘कहा भयो जो लोग कहत है, कान्ह द्वारका छायो’ - सूरदास )। जब का = तक से अर्थात् परदेश जाने के समय से। फेर = फिर। बहोरि = फिर कभी। खोर करूं = क्षौर करा डालूं, कटवाँ दूं। भगवाँ भेख = संन्यासिन का वेश। च्यारूँ देस = चारों दिशाओं में। मिल पाकूँ = मिलने को, मिलने की आशा में। जीवनी = जीऊँ, जीने की इच्छा करती हूँ। अनेस = अनेक।

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