परम सनेही राम की निति ओलूंरी आवै -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहानुभव

राग पूरिया धनाश्री


परम सनेही राम की निति ओलूँरी आवै ।। टेक ।।
राम हमारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै ।
आवण कह गये अजहुँ न आये, जिवड़ो अति उकलावै ।
तुम दरसण की आस रमैया, कब हरि दरस दिखावै ।
चरण कँवल की लगनि लगी नित, बिन दरसण दुख पावै ।
मीराँ कूँ प्रभु दरसण दीज्‍यौ, आँणद बरएयूँ न जावै ।।69।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ओलूं = स्मृति, याद। उकलावै = अकुलाता है, बेचैन है। रमैया = प्रियतम रूप राम। लगनि = प्रीति। वरण्यूं = वर्णन किया।

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