जोगियारी प्रोतड़ी है दुखड़ा रो मूल -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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उपालंभ

राग पहाड़ी


जोगियारी प्रीतड़ी है दुखड़ा रो मूल ।। टेक ।।
हिल मिल बात बणावत मीठी, पीछै जावत भूल ।
तोड़त जेज करत नहिं सजनी, जैसे चँपेली के फूल ।
मीराँ कहै प्रभु तुमरे दरस बिन, लगत हिवड़ा में सूल ।।58।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रीतडी = प्रीति, प्रेम। दुखडा = दुख। रो = का। मूक = कारण। वणावत = बनाता है। जावत भूल = भूल जाता है। जेज = देर। चंपेली = चमेली। सूक = दर्द।

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