जोगिया से प्रीत कियां दुख होइ -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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उपालंभ


जोगिया से प्रीत कियाँ दुख होइ ।। टेक ।।
प्रीत कि‍याँ मुख ना मोरी सजनी, जोगी मित न कोइ ।
राति दिवस कल नाहिं परत है, तुम मिलियाँ बिनि मोइ ।
ऐसी सूरत या जग माँहि फेरि न देखी सोइ ।
मीराँ के प्रभु कबरे मिलोगे, मिलियाँ आँणद होइ ।।57।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कियां = करने से। मिंत = मित्र। मिलियाँ = मिले। विनि = बिना। फेरि = फिर कभी। आणँद = आनंद।

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