कोई दिन याद करोगे रमता राम अतीत -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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उपालंभ


राग सोरठ


कोई दिन याद करोगे रमता राम अतीत ।। टेक ।।
आसण माड़ अडिग होय बैठा, याही भजन की रीत ।
मैं तो जाणूँ जोगी संग चलेगा, छाँड गया अंधबीच ।
आत न दीसे जात न दीसे, जोगी कि‍सका मीत ।
मीराँ कहै प्रभु गिरधर नागर, चरणन आवे चीत ।।59।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कोई दिन = किसी दिन, कभी न कभी। रमता = घूमने फिरने वाले, एक जगह जम कर न रहने वाले। अतीत = निर्लेप, विरक्त, निरपेक्ष। आसण माड़ = आसन मार कर वा लगा कर। अडिग = निश्चल, अचल। जाणूँ = जाना। चीत = चित्त, सुध।

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